लेखनी कविता - कछुआ - बालस्वरूप राही

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कछुआ / बालस्वरूप राही हम बच्चे डरते कछुए से, पर हम से दर्ता कछुआ। छूए अगर कोई तो झटपट मुंह अंदर करता कछुआ। ढीलमढील अंग हैं सारे, पत्थर-सी हैं पीठ मगर! ...

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